चामुंडा चालीसा
दोहा
नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड ।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़ ।।
मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत ।
मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत ।।
चौपाई
नमस्कार चामुंडा माता ।
तीनो लोक मई मई विख्याता ।।
हिमाल्या मई पवितरा धाम है ।
महाशक्ति तुमको प्रडम है ।।1।।
मार्कंडिए ऋषि ने धीयया ।
कैसे प्रगती भेद बताया ।।
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली ।
तीनो लोक जो कर दिए खाली ।।2।।
वायु अग्नि याँ कुबेर संग ।
सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग ।।
अपमानित चर्नो मई आए ।
गिरिराज हिमआलये को लाए ।।3।।
भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया ।
चेतन शक्ति करके बुलाया ।।
क्रोधित होकर काली आई ।
जिसने अपनी लीला दिखाई ।।4।।
चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए ।
कामुक वेरी लड़ने आए ।।
पहले सुग्गृीव दूत को मारा ।
भगा चंदड़ भी मारा मारा ।।5।।
अरबो सैनिक लेकर आया ।
द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया ।।
जैसे ही दुस्त ललकारा ।
हा उ सबद्ड गुंजा के मारा ।।6।।
सेना ने मचाई भगदड़ ।
फादा सिंग ने आया जो बाद ।।
हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए ।
मदिरा पीकेर के घुर्रई ।।7।।
चतुरंगी सेना संग लाए ।
उचे उचे सीविएर गिराई ।।
तुमने क्रोधित रूप निकाला ।
प्रगती डाल गले मूंद माला ।।8।।
चर्म की सॅडी चीते वाली ।
हड्डी ढ़ाचा था बलसाली ।।
विकराल मुखी आँखे दिखलाई ।
जिसे देख सृिस्टी घबराई ।।9।।
चंदड़ मूंदड़ ने चकरा चलाया ।
ले तलवार हू साबद गूंजाया ।।
पपियो का कर दिया निस्तरा ।
चंदड़ मूंदड़ दोनो को मारा ।।10।।
हाथ मई मस्तक ले मुस्काई ।
पापी सेना फिर घबराई ।।
सरस्वती मा तुम्हे पुकारा ।
पड़ा चामुंडा नाम तिहरा ।।11।।
चंदड़ मूंदड़ की मिरतट्यु सुनकर ।
कालक मौर्या आए रात पर ।।
अरब खराब युध के पाठ पर ।
झोक दिए सब चामुंडा पर ।।12।।
उगर्र चंडिका प्रगती आकर ।
गीडदीयो की वाडी भरकर ।।
काली ख़टवांग घुसो से मारा ।
ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा ।।13।।
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया ।
मा वेश्दवी कक्करा घुमाया ।।
कार्तिके के शक्ति आई ।
नार्सिंघई दित्तियो पे छाई ।।14।।
चुन चुन सिंग सभी को खाया ।
हर दानव घायल घबराया ।।
रक्टतबीज माया फेलाई ।
शक्ति उसने नई दिखाई ।।15।।
रक्त्त गिरा जब धरती उपर ।
नया डेतिए प्रगता था वही पर ।।
चाँदी मा अब शूल घुमाया । मारा उसको लहू चूसाया ।।16।।
सूभ निसुभ अब डोडे आए ।
सततर सेना भरकर लाए ।।
वाज्ररपात संग सूल चलाया ।
सभी देवता कुछ घबराई ।।17।।
ललकारा फिर घुसा मारा ।
ले त्रिसूल किया निस्तरा ।।
सूभ निसुभ धरती पर सोए ।
डेतिए सभी देखकर रोए ।।18।।
कहमुंडा मा ध्ृम बचाया ।
अपना सूभ मंदिर बनवाया ।।
सभी देवता आके मानते ।
हनुमत भेराव चवर दुलते ।।19।।
आसवीं चेट नवराततरे अओ ।
धवजा नारियल भेट चाड़ौ ।।
वांडर नदी सनन करऔ ।
चामुंडा मा तुमको पियौ ।।20।।
दोहा
सरणागत को शक्ति दो हे जाग की आधार ।
‘ओम’ ये नेया दोलती कर दो भाव से पार ।।
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